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पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त प्रदोष काल में, स्थिर लग्न में होगी मां लक्ष्मी की आराधना
हापुड़। धनतेरस के साथ शुरू हुआ दिवाली पर्व अब अपने चरम पर पहुंच रहा है। रविवार को छोटी दिवाली यानी नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी, जबकि सोमवार को दीपों का पर्व दिवाली पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। बाजारों से लेकर मंदिरों और घरों तक दीपोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।
पंचांग के अनुसार, इस बार दिवाली पर पूजा का विशेष संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर दोपहर 3:45 बजे से आरंभ होकर 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे तक रहेगी। इसी दौरान प्रदोष काल में मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
21 अक्टूबर को सूर्यास्त शाम 5:40 बजे होगा, जिससे प्रदोष में अमावस्या केवल 14 मिनट के लिए प्राप्त होगी। ऐसे में पूजन का समय भले ही सीमित हो, लेकिन अत्यंत फलदायी माना जा रहा है।
ज्योतिषविद् बताते हैं कि दीपावली पूजन के लिए स्थिर वृष लग्न, लाभ और अमृत चौघड़िया सबसे उत्तम माने जाते हैं। इस वर्ष भद्रा, ग्रहण या अशुभ संयोग नहीं बन रहे हैं, जिससे पूरे संध्या काल से रात्रि तक का समय शुभ रहेगा।
पंडितों का कहना है कि दीपावली की रात्रि में मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर की आराधना से सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में यह दिन दैवीय शक्तियों को प्रसन्न करने का विशेष अवसर बताया गया है।
नगर के बाजारों, मोहल्लों और गलियों में दीपोत्सव की रौनक साफ दिखाई दे रही है। मिट्टी के दीपक, रंगोली सामग्री, सजावटी वस्तुएं और पूजा का सामान खरीदने के लिए शनिवार शाम से ही भीड़ उमड़ने लगी थी। दुकानों पर रौशनी और सजावट ने त्योहार को और भी रंगीन बना दिया है।
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