हापुड़। तहसील कार्यालयों के चक्कर काटते हुए उम्र का एक बड़ा हिस्सा बीता चुके किसान हरिराज सिंह को आखिरकार 21 साल बाद न्याय मिला। खतौनी में दर्ज पांच लाख रुपये का फर्जी ऋण एसडीएम सदर ईला अरुण के निर्देश पर महज कुछ घंटों में हटवा दिया गया। वर्षों से न्याय की आस में भटक रहे हरिराज की आंखें इस फैसले के बाद नम हो गईं।
गलत प्रविष्टि ने बना दिया था कर्जदार
गांव कन्हई उर्फ दयानगर निवासी किसान हरिराज सिंह ने बताया कि उनके पिता ने करीब दो दशक पहले मात्र 90 हजार रुपये का कृषि ऋण लिया था, जिसे समय रहते चुका भी दिया गया था। मगर वर्ष 2004 में दस्तावेजों की गड़बड़ी के कारण खतौनी में ₹5 लाख का नया ऋण दर्ज हो गया, जो उन्होंने कभी लिया ही नहीं था।
इस त्रुटि की वजह से न केवल उनकी जमीन विवादों में फंसी रही, बल्कि उन्हें सरकारी योजनाओं और ऋण सुविधा से भी वंचित रहना पड़ा।
संपूर्ण समाधान दिवस में सुनवाई, एसडीएम ने दिए तत्काल आदेश
सोमवार को नगर पालिका सभागार में आयोजित संपूर्ण समाधान दिवस में हरिराज सिंह ने अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने वर्षों की शिकायतों और दस्तावेजों का पुलिंदा अधिकारियों के समक्ष रखा।
एसडीएम ईला अरुण ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल तहसील कर्मचारियों को जांच के निर्देश दिए। चार घंटे की पड़ताल के बाद यह स्पष्ट हुआ कि जिस कर्मचारी ने ऋण दर्ज किया था, वह अब सेवानिवृत्त हो चुका है, और ऋण की प्रविष्टि पूरी तरह फर्जी है।
जैसे ही मिला न्याय, छलक पड़ीं किसान की आंखें
एसडीएम द्वारा खतौनी से गलत ऋण हटवाए जाने की जानकारी मिलते ही किसान हरिराज भावुक हो गए। उन्होंने कहा,
"अब जाकर मेरी मेहनत रंग लाई है। 21 साल बाद मुझे अपनी ही जमीन पर सुकून मिला है।"
हरिराज ने एसडीएम का आभार जताया और उन्हें आशीर्वाद देकर अपने गांव लौट गए।
बार-बार शिकायत के बावजूद नहीं मिली थी सुनवाई
हरिराज सिंह ने बताया कि इस मामले में वह अब तक 30 से अधिक बार शिकायत कर चुके थे। कभी तहसील तो कभी कलक्ट्रेट, हर दफ्तर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। फाइलें एक मेज से दूसरी मेज घूमती रहीं, अधिकारी बदलते रहे, पर समाधान नहीं निकला।
एसडीएम का बयान – “किसी भी निर्दोष को नहीं भुगतना पड़ेगा फर्जीवाड़े का खामियाजा”
एसडीएम सदर ईला अरुण ने कहा कि
"पीड़ित की बातों में सच्चाई दिखी तो तत्काल जांच कराई गई। दस्तावेजों की पुष्टि होने के बाद ऋण को खतौनी से हटा दिया गया है। किसी भी किसान को पुराने सिस्टम की गलती का खामियाजा नहीं भुगतना पड़ेगा।"
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