हापुड़। जिले में किसानों के नाम पर हुए करोड़ों रुपये के नलकूप बिल घोटाले की जांच अब तक ठंडे बस्ते में है, जबकि 20 हजार से अधिक किसानों को आज भी बिना गलती के भारी भरकम एरियर चुकाना पड़ रहा है। घोटाले की फाइलें एक बार फिर चर्चा में हैं क्योंकि जांच समिति को नया रिमाइंडर भेजा गया है।
बिजली विभाग की लापरवाही और भ्रष्टाचार की यह कहानी लगभग 20 साल पुरानी है, लेकिन इसका खामियाजा आज भी ईमानदार किसान भुगत रहे हैं।
कैसे हुआ घोटाला?
जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2000 के पहले और उसके कुछ वर्षों तक किसानों से बिजली बिल की वसूली तो की गई, लेकिन यह पैसा न तो विभागीय खाते में जमा किया गया और न ही सही तरीके से रजिस्टर में दर्ज हुआ।
दस्तावेजों और लेजर की एंट्री से बचने के लिए कई रिकॉर्ड जानबूझकर नष्ट कर दिए गए। यहां तक कि रसीदें भी कथित तौर पर नाले में फेंक दी गईं।
1200 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचा घोटाला
घोटाले की राशि बीते वर्षों में लगातार बढ़ती रही। जानकारों का कहना है कि हर तीन साल में यह राशि लगभग दोगुनी हो रही है और अब तक आंकड़ा 1200 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है।
जांच में देरी का सिलसिला जारी
* वर्ष 2019 में तत्कालीन जिलाधिकारी अदिति सिंह ने इस मामले को शासन के संज्ञान में लाया
* एमडी कार्यालय से विशेष जांच समिति बनाई गई
* समिति ने कुछ रसीदें और दस्तावेज इकट्ठा किए, लेकिन वे भी अधूरे या क्षतिग्रस्त मिले
* अब तक किसानों के बिलों का संशोधन नहीं हो सका
किसानों की हालत दयनीय
आज भी नलकूप उपभोक्ता किसान रोजाना बिजली विभाग के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। किसी के नाम पर लाखों का एरियर जुड़ चुका है, तो किसी को बिना वजह कनेक्शन काटने की चेतावनी दी जा रही है।
पीड़ित किसान सूरजपाल ने बताया—
"हमने समय पर बिल जमा किया, रसीदें भी हैं, फिर भी हजारों रुपये का बकाया जोड़ दिया गया है। अफसरों की गलती का दंड हमें क्यों?"
अधिशासी अभियंता का बयान
अधिशासी अभियंता अशीष कौशल ने बताया—
“जांच समिति को एक बार फिर रिमाइंडर भेजा गया है, ताकि लंबित प्रकरणों में जल्द निष्कर्ष निकले और किसानों को राहत मिले।”
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