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गढ़ में चबूतरे पर 20 हजार खर्च, पिलखुवा में वही काम 4500 में; ऊर्जा निगम की निविदा प्रक्रिया पर उठे सवाल
हापुड़। उत्तर प्रदेश ऊर्जा निगम के गढ़मुक्तेश्वर और पिलखुवा डिवीजनों में कराए जा रहे डिपॉजिट कार्यों की निविदाओं को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। एक ही फर्म को दोनों क्षेत्रों में टेंडर मिलने के बावजूद सामग्री और श्रम लागत में बड़ा अंतर सामने आया है। खासकर ट्रांसफार्मर प्लिंथ (चबूतरा) निर्माण की दरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
गढ़ में चार गुना अधिक दर से बना चबूतरा
सूत्रों के मुताबिक, गढ़ डिवीजन में एक ट्रांसफार्मर प्लिंथ की लागत 20 हजार रुपये बताई गई है, जबकि पिलखुवा में यही कार्य महज 4500 रुपये में किया जा रहा है। यहीं नहीं, ट्रांसफार्मर ढुलाई, एलटी एबीसी वायरिंग, पीसीसी पोल और गार्डिंग की दरों में भी स्पष्ट अंतर देखा गया है।
एक ही फर्म को दोनों डिवीजन में मिला ठेका
गढ़ डिवीजन के 30 लाख रुपये के डिपॉजिट कार्य के लिए हाल ही में टेंडर प्रक्रिया पूरी की गई थी। निविदा खुलने के बाद एक फर्म को यह कार्य करीब 2.45 लाख रुपये में सौंपा गया। वहीं, पिलखुवा डिवीजन के 40 लाख रुपये के कार्य के लिए भी उसी फर्म ने भाग लिया, जहाँ तकनीकी जांच के बाद दो फर्में बाहर हो गईं और टेंडर उसी कंपनी को 97 हजार रुपये में दे दिया गया।
19 दिन की देरी से खोली गई बिड, पारदर्शिता पर सवाल
कुछ स्थानीय ठेकेदारों ने यह भी आरोप लगाया है कि पिलखुवा डिवीजन की ई-निविदा निर्धारित तिथि से 19 दिन बाद खोली गई, जिससे निविदा प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
ऊर्जा निगम ने दी सफाई
इस मामले में अधीक्षण अभियंता एसके अग्रवाल ने बताया कि टेंडर उन्हीं को दिया जाता है, जिनकी दर सबसे कम (एल-1) होती है।
"फर्म को जो भी दरें निर्धारित करनी हैं, वह उसकी रणनीति है। लेकिन उसे कार्य तय मानकों के अनुसार ही पूरा करना होता है। प्रक्रिया पूरी तरह से नियमों के तहत की जा रही है।"
दरों के अंतर ने बढ़ाई चिंता, जांच की मांग
विभागीय जानकार मानते हैं कि दरों में इतना बड़ा अंतर न केवल अनियमितता की ओर इशारा करता है, बल्कि इससे सरकारी धन के उपयोग पर भी सवाल उठता है। अब इस पूरी प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच की मांग भी उठने लगी है।
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