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हापुड़/10 अक्टूबर —करवाचौथ का पर्व आज देशभर में श्रद्धा, आस्था और प्रेम के साथ मनाया जा रहा है। सुहागनों के लिए यह दिन सिर्फ व्रत नहीं, बल्कि अपने पति के लिए अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। सोलह श्रृंगार में सजी महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर रात को चांद के दीदार के बाद व्रत खोलेंगी। छलनी से चांद और फिर पति को देखने की रस्म वैवाहिक जीवन की मिठास और शुभता को दर्शाती है।
🌕 चंद्रमा: शांति, सौंदर्य और संतुलन का प्रतीक
चंद्र देवता की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वह आयु, मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन का प्रतीक माने जाते हैं। मान्यता है कि चंद्रमा की कृपा से पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है और वैवाहिक जीवन में मिठास आती है। करवा चौथ पर महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करती हैं।
🪔 क्या है करवा चौथ का अर्थ?
‘करवा’ शब्द एक विशेष मिट्टी के बर्तन को दर्शाता है, जो इस व्रत का प्रमुख हिस्सा होता है। पूजा में दो करवे बनाए जाते हैं, जिन पर रक्षा सूत्र बांधकर स्वस्तिक का चिन्ह अंकित किया जाता है। मिट्टी के करवे का धार्मिक महत्व आज भी उतना ही गहरा है जितना प्राचीन काल में था — यह पवित्रता और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है।
🌾 मिट्टी का करवा क्यों होता है विशेष?
करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं। व्रत के समापन पर जब पति अपनी पत्नी को मिट्टी के करवे से जल पिलाते हैं, तो यह क्रिया उनके प्रेम, विश्वास और स्थायित्व का प्रतीक बन जाती है। यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि वैवाहिक जीवन के एक पवित्र वचन की तरह है।
🕯️ छलनी और दीपक की परंपरा का अर्थ
* चांद को देखने से पहले दीपक को छलनी में रखकर देखना, फिर उसी छलनी से पति के चेहरे को निहारना — यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
* दीए की लौ को शुभ ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जो नकारात्मकता को दूर करती है।
* छलनी का प्रयोग यह दर्शाता है कि जीवन में आने वाली बुराइयों को छानकर केवल शुभता को अपनाया जाए।
* यह रस्म पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन की मजबूती के लिए की जाती है।
📿 पूजा का शुभ मुहूर्त (2025)
* शाम 5:57 बजे से रात 7:11 बजे तक
* कुल अवधि: 1 घंटा 14 मिनट
करवाचौथ का यह पर्व न केवल रीति-रिवाजों का पालन है, बल्कि भारतीय संस्कृति में स्त्री की भूमिका और उसकी आस्था की शक्ति को भी दर्शाता है। आज रात जब चांद निकलेगा और हजारों महिलाएं छलनी से प्यार के चांद को देखेंगी, तो वह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक जुड़ाव का अहसास होगा।
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