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हापुड़ - गरीबों के लिए भेजा गया सरकारी अनाज एक बार फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। हापुड़ से गाजियाबाद के लिए रवाना हुए राशन से लदे कई ट्रक रास्ते में ही संदिग्ध हालात में पकड़े गए। प्रशासनिक जांच में यह खुलासा हुआ है कि राशन की बोरियों पर पानी डालकर वजन बढ़ाया गया और कुछ कट्टे रास्ते में ही बेच दिए गए।
आठ ट्रक मिले रास्ते में खड़े, कई बोरियां गीली
20 अगस्त को एफसीआई डिपो हापुड़ से 15 ट्रक राशन गाजियाबाद भेजा गया था। लेकिन इनमें से आठ ट्रक चौधरी ढाबा (हापुड़-मोदीनगर रोड) के पास खड़े पाए गए। मौके पर पहुंचे एडीएम, एसडीएम सदर, पूर्ति निरीक्षक और पुलिस ने जब जांच की, तो कई गेंहू व चावल की बोरियां गीली मिलीं और कागजात अधूरे थे। बाद में ट्रकों की तौल कराई गई, तो वजन में भी गड़बड़ी पाई गई।
ड्राइवरों ने कुबूल की अनियमितता, लिखित बयान से इनकार
पूछताछ में ट्रक चालकों ने माना कि उन्हें कम मजदूरी मिलती है, इसलिए वे ढाबे पर कुछ राशन बेच दिया करते हैं। बोरियों का वजन बढ़ाने के लिए पानी डाला जाता है, ताकि घपला पकड़ में न आए। हालांकि कोई भी चालक लिखित बयान देने को तैयार नहीं हुआ।
एफआईआर दर्ज, लेकिन असली चेहरे अब भी बाहर
पूर्ति विभाग की शिकायत पर पुलिस ने आठ ट्रक ड्राइवरों और परिवहन कंपनी मेसर्स बुलंद लॉजिस्टिक्स, साथ ही ढाबा संचालकों के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। गिरफ्तार लोगों में दिनेश, इंदजीत, विजेंद्र, प्रवीण, बिजेंद्र, नाजिम, आमिर और शहजाद के नाम सामने आए हैं। ढाबा मालिक हनी व सनी चौधरी भी नामजद हैं।
सिंडिकेट की बू, गहरी जांच की दरकार
जांच में खुलासा हुआ है कि यह कोई मामूली गड़बड़ी नहीं, बल्कि सुनियोजित सिंडिकेट का हिस्सा है। सूत्रों का कहना है कि रात के वक्त यही अनाज स्थानीय फ्लोर मिलों में खपाया जाता है। बिना ऊंचे स्तर पर मिलीभगत के यह घोटाला संभव नहीं है।
पहले भी हो चुकी है ऐसी घटना, कार्रवाई न होने से बढ़ा हौसला
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले भी सोशल मीडिया पर राशन पर पानी डालने का वीडियो वायरल हुआ था। लेकिन तब कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन की ढील ने इस गोरखधंधे को और मजबूत बना दिया है।
प्रश्न यही है – क्या इस बार भी बच जाएंगे सिंडिकेट के “राजा-वज़ीर”?
ट्रक चालकों और ढाबा मालिकों पर कार्रवाई कर प्रशासन ने एक कदम जरूर उठाया है, लेकिन असली चुनौती उन मास्टरमाइंडों को पकड़ने की है जो पर्दे के पीछे से इस पूरे खेल को चला रहे हैं। यदि सरकार और एफसीआई वाकई ईमानदार हैं, तो उन्हें इस सिंडिकेट की जड़ों तक पहुंचना होगा।
जनहित में प्रशासन को चाहिए कि वह मामले की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित करे और प्रत्येक कड़ी को बेनकाब करे। जब तक बड़े मगरमच्छ सलाखों के पीछे नहीं जाएंगे, तब तक गरीबों का हक इसी तरह बिकता रहेगा।
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